Thursday 6 October 2011

पश्चिमी पूँजीवाद का खेल ख़त्म?

चंद्रन नायर
संस्थापक, हॉंगकॉंग-स्थित ग्लोबल इंस्टिट्यूट फ़ार टुमारो
 

पिछले 30-40 सालों में पूँजीवाद अपने चरम पर पहुँच गया है और अब वो गहरे संकट में है. लेकिन हम इसे स्वीकार नहीं कर रहे हैं.

पूँजीवाद के दो मूल सिद्धांतों को समझना बहुत ज़रूरी है. ये सोच कि मनुष्य अक्लमंद होते हैं और बाज़ार का बर्ताव दोषपूर्ण होता है, ये ग़लत है. दूसरा ये कि बाज़ार अपने आम दाम निर्धारित करता है, ये भी ग़लत सोच है.

ये महत्वपूर्ण है कि हम आधुनिक पूँजीवाद की जड़ को समझें.

आप बहस कर सकते हैं कि साधनों की कीमत घटाने और उन्हें दाम से कम कीमत पर हासिल करने के लिए गुलामी प्रथा पहली कोशिश थी. दास प्रथा के अंत के बाद उपनिवेशवाद की भी कोशिश थी कि पूँजीवाद मॉडल का इस्तेमाल करके साधनों को सस्ते में इस्तेमाल किया जाए.

जब उपनिवेशवाद का अंत हुआ तब आर्थिक तरक्की के लिए भूमंडलीकरण का तर्क पेश किया गया और फिर वित्तीय भूमंडलीकरण का.
हमें मूल बदलाव और नवीनीकरण की ज़रूरत है, खासकर जिस तरह लोग रहते हैं. हमें विकास की तंग सोच से आगे जाकर मानवीय विकास के बारे में सोचना और विचार विमर्श करना होगा."
 
 
इस संदर्भ में अगर हम यूरोप की बात करें तो बात कही जाएगी कि पिछले 30 वर्षों में ही संसाधनों का ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल किया गया है, लेकिन मैं कहूँगा कि इसे 10 से गुणा कर देना चाहिए और पिछले 300 सालों की ओर ध्यान देना चाहिए. ये वही समय है जब विकास की दर को लोगों के शोषण के ज़रिए हासिल किया गया है.

जो बात हमें पहचानने की ज़रूरत है वो ये कि दुनिया जो 100 साल पहले थी, वो अब उससे बहुत भिन्न है. उस समय दुनिया की जनसंख्या एक अरब थी. अब जब ये आंकड़ा बढ़कर करीब सात अरब हो गया है, तो बदलाव की आवश्यकता है.


दुनिया को दो मुख्य बातों को समझने की ज़रूरत है जिसे पश्चिमी पूँजीवाद ने सुविधाजनक रूप से अनदेखा कर दिया है. जिस बिकाऊ माल पर कंपनियों और अर्थव्यवस्थाएँ पनप रही हैं वो संसाधनों की कीमतों को कम रखकर और दामों को बढ़ाकर ही हासिल हो सका है.

दूसरा कि ये खेल अब खत्म हो चुका है और इसलिए हमें मूल बदलाव और नवीनीकरण की ज़रूरत है, खासकर जिस तरह लोग रहते हैं. हमें विकास की तंग सोच से आगे जाकर मानवीय विकास के बारे में सोचना और विचार विमर्श करना होगा.

आर्थिक विकास का अर्थ ये नहीं है कि सभी को खिलौने और कार मिल जाएँगे.

ये संभव नहीं है, और अब पूँजीवाद के लिए आगे जाने का रास्ता नहीं बचा है और ज़रूरत है एक नहीं सोच की.

हमें मूल बदलाव और नवीनीकरण की ज़रूरत है, खासकर जिस तरह लोग रहते हैं. हमें विकास की तंग सोच से आगे जाकर मानवीय विकास के बारे में सोचना और विचार विमर्श करना होगा."


 Courtesy : bbc hindi.com

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